हमारा समाज एक कृषि प्रधान समाज है, किराड़ किरात किरार समाज की ८०% आबादी गाँव देहातों में बसती हैं, उनके जीवन-यापन का आधार कृषि है बहुत कम परिवारों के सदस्य, तो भी बड़े सपन्न उन घरों के बाहर शहरों में पढ़-लिखकर नौकरी या व्यवसाय कर पाते है। अधिकतर तो कृषि पर आश्रित हैं ।
हमारी प्रगति की तीव्र गति में मुख्य रूप से बाधक हैं हमारी अशिक्षा।
शिक्षा एक ऐसा रास्ता है जिसके द्वारा आर्थिक उन्नति के द्वार भी अपने आप खुलते चले जाते हैं । शिक्षित व्यक्ति द्वारा की गई खेती किसानी, भी अलग ही परिणाम देती हैं खाद्य, बीज समय पर औषधि, पानी सभी सभी चीजों का तालमेल उचित हमारे समाज में आज भी बहुत विपन्नता है । हमें अपनी आर्थिक स्थिति सुधारने और सुदृढ़ करने के उपाय आवश्य करने चाहिये । बैसे तो आज गाँव-गाँव में स्कूल खुल गए है और हमारे समाज के किसान वर्ग के लोग भी जागरूक हो चुके हैं । ये प्राथमिक या मिडिल स्कूल तक सीमित है बहुत हुआ तो हाईस्कूल । कई युवक बच्चे भी सुविधा और धन के अभाव में उच्च शिक्षा से वंचित रह जाते हैं।
महिलाओ की हालत और भी खराब है, हमारे समाज में महिलाये आज भी आजीवन दूसरों पर आश्रित रहती हैं। मगर हम आश्रित क्यो है। क्योंकि आज भी हम में शिक्षा का आभाव है। पढते भी हैं तो हमें अपनी शिक्षा का क्षेत्र चुनने को अपनी पसंद से अपना बाहर भेजा कैरियर बनाने की छूट नही है। क्यों ? कि हम लडकियां हैं। जिन्हें पढ़ने के लिये बाहर भेजा नहीं जा सकता इससे प्रतिभा और असीम योग्यता होने के बाबजूद भी लडकियों मजबूरन बी.ए., एम.ए. करके, जो घर बैठे किया जा सकता हैं अपनी शिक्षा की इतनाही कर पाती हैं।
हमारी किरार समाज में आज भी शिक्षा के अभाव में कुरीतियां पनप रहीं हैं जिनकी भारी कीमत भी महिलाओ को ही चुकानी पड़तीं हैं। जैसा कि- पर्दाप्रथा। वहाँ महिलाओं में जागृति कैसे संभव हो? बडो का सम्मान तो करना ही चाहिये, उनको इज्जत करना जरूरी है, मगर उनके लिये पर्दा करना जरूरी नहीं। ये प्रतिभाएं उभरने से पहले ही दम तोड़ देंखी हैं। धीरे-धीरे पुरे समाज में दानव रूपी दहेज प्रथा व्याप्त होती जा रहीं है । कुछ क्षेत्र विशेष में तो इसका रूप बहुत विकराल है लडकों को तो जैसे बोली लगती है अलग-अगल बोली और जो ज्यादा से ज्यादा दे, लड़का उसे मिल जाएगा दामाद के रूप मे, उस पर भी गारंटी नहीं होती कि शादी निभ, जाये
क्या पता कब बहु जल जाये । समाज में व्याप्त कुरीतियों का डटकर मुकाबला कर उन्हें दूर हटाने में सहयोग करे।
हमारे समाज में एकता या संगठन का अभी भी आभाव हैं, संगठन कीं भावना में ही कमी हैं और हमारे पिछडे पन का यह भी मुख्य कारण है, अगर हम सब संगठित हो जाये तो दुनिया को कोई ताकत हमारी तरक्की के रास्तों को रोक नहीं सकती, संगठन की अपनी ताकत होती है।
समाज संगठन के साथ-साथ समाज के जरूरतमंद लोगों के विकास के लिये कुछ सामाजिक संस्थानों जैसे-
१. किराड़ किरात किरार समाज की धर्मशालाये।
२. किराड़ किरात किरार समाज के मंगल कार्यालय।
३. किराड़ किरात किरार समाज के कुछ ऐसे होस्टल या कुछ ऐसे आवास गृह बनाये, जिनमें आसपास के ग्रामीण क्षेत्र के विद्यार्थी या कामकाजी महिलाओ के रहने की व्यवस्था को जा सकती हैं। मुझे विश्वास हैं वो दिन दूर नहीं जब हम गर्व से कह सकेगें कि हमारा समाज एक उन्नत, प्रगतिशील समाज है।
श्रीमति जयश्री ठाकुर, संभागीय उपाध्यक्ष
मानव अधिकार परिषद् नैनपुर, जिला मण्डल (म.प्र.)